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" ले कमला! तू भी पहले खाना खा ले, काम बाद में निपटा लेना " मिसिज़ चड्ढा ने सुबह से काम में लगी कमला को खाने की प्लेट थमाते हुए कहा तो कमला को घर पर बैठे अपने भूखे बच्चों की याद सताने लगी।
" अरे!! खाना? मेम साब! आज घर जाने में बहुत देर हो गयी है,वहां घर पर मेरे बच्चे भूखे बैठे होंगे तो मेरे मुंह में यहां निवाला कैसे उतरेगा मेमसाब!!बोलते हुए कमला उदास होगयी।
" ठीक हैs उनके लिये भी ले जाना, इसे तू ही खा ले "।
फिर चलते वक्त मिसिज़ चड्ढा ने बच्चों के लिये भी बहुत सारा खाना कमला को दे दिया।
कमला घर जाकर बड़े प्यार से अपने बच्चों को खाना खिलाने लगी और बच्चे भी चटकारे ले कर पार्टी का सा आनन्द लेने लगे।
वहीं दरवाजे पर पड़ी हुई हड्डियों का ढांचा बनी कुतिया जो अक्सर सुस्ताने के लिये उन्हीं के दरवाजे पर लेटी रहती थी, खाने की खुशबू से उठ बैठी और बच्चों के हाथों से मुंह तक जाते एक एक निवाले को गिनने लगी। उसकी आंखों में कमला को याचना सी नजर आ रही थी जिसे देख कर कमला ने दो पूड़ियां उस की ओर भी उछाल दीं " ले तू भी खा ले , क्या याद करेगी ,आज मेम साब के बेटे का जन्मदिन था "।
कुतिया कुछ देर उन पूड़ियों को उलट-पलट कर सूंघती रही फिर मुंह में दबा कर वहां से निकल गयी। " कितने प्यार सेे अपने बच्चों के मुंह से निवाला निकाल कर दिया था इसे, पर जाने कहां ले कर चल दी है चुड़ैल,यहीं बैठ कर ना खा लेती! देखूं तो कहां जाती है लेकर !! कमला बड़बडा़ती हुई दरवाजे के बाहर झांकने लगी "।
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